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Cousin's Wife(India) चचेरे भाई की बीवी

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जब विदिशा पहली बार मुझसे मिली थी, उस समय वह एक दुबली-पतली सी कमसिन लड़की जैसी थी.



लेकिन जब वह मुझसे विदा हो रही थी, उस समय वह एक गदराई औरत के रूप बदल चुकी थी, मांसलता ने उसके हर अंग को अपनी गिरफ्त में ले लिया था.



 



जिस जींस को वह बड़े आराम से पहन लेती थी, अब उसी जींस में उसकी जांघें और नितम्ब बहुत मुश्किल से आते थे.



उसके चूतड़ दो अंडाकार मांसल गोलाइयों में तब्दील हो चुके थे जो जींस में अलग-अलग दिखते और मानो वह जींस की कैद से आजाद होने को मचल रहे हों।



 



मैंने विदिशा को कैसे-कैसे चोदा वह फिर कभी बताऊंगा लेकिन सच में जिस किसी को भी एक बार पराई चूत का चस्का लग जाए वह बिना चूत के नहीं रह सकता.



जिसने भी विदिशा और रेनू के जैसी मांसल और कसी हुई चूत को भोग लिया हो, उसके लिए संयम रखना किसी भी दशा सम्भव नहीं है।



 



वैसे भी



चूत-चूत सब एक सी, सबको एक ही रंग।



टांग उठा कर पेलिए, चाहे चौड़ी हो या तंग!!



 



जब तक मेरे साथ विदिशा रही, मैं सब कुछ भूल सा गया, दुनिया जैसे भुला दी थी हम दोनों ने!



 



लेकिन विदिशा के वापस चले जाने के बाद मुझे फिर चूत की तलब, काम वासना सताने लगी।



 



अब इस अनजान शहर में एक रेनू भाभी ही थी जो मेरी तलब को बुझा सकती थी.



मैं फिर से रेनू भाभी की वेट पुसी के लिए तड़पने लगा.



रेनू के हुस्न का जादू अब मेरे दिलो-दिमाग छा चुका था.



 



अब पता नहीं क्यों मेरे साथ अजीब सा हो रहा था, मुझे उठते-बैठते, सोते-जागते बस रेनू की चूत और मांसल गांड ही नजर आ रही थी।



 



एक दिन में ना जाने कितनी बार लन्ड ने खड़ा होना शुरू कर दिया था, जितनी बार उसको बिठाता वह उतनी ही बार उठ कर फुंफकार मारने लगता।



 



रेनू भी कभी वीडियो कॉल करके, कभी चूत की पंखुड़ियों के फ़ोटो भेज कर मेरे जलते हुए लन्ड पर घी डाल रही थी.



 



उस को चोदे हुए लगभग 30 दिन हो चुके थे, मैं पागलों की तरह रेनू की गली के चक्कर काटने लगा.



लेकिन उसके घर और चूत के दरवाजे पर दस्तक नहीं दे पा रहा था.



 



कहते हैं ना कि अगर किसी प्यासी चूत को कड़क लन्ड से चोदना चाहो तो सारी कायनात उस चूत को चुदवाने की साजिश में लग जाती है.



यह बिल्कुल सही है।



 



रेनू ने एक दिन शाम को मुझे फोन किया- कैसे हो हुजूर, क्या कर रहे हो, विदिशा से फ्री हो गए क्या? या अभी भी उसे पेल रहे हो?



 



"अरे कहां के हुजूर! मैं तो आपका और आपकी कमसिन छुटकी के गुलाम हूं. आज कैसे याद किया इस गुलाम को मल्लिका-ए-हुस्न ने?"



मैं रेनू को मक्खन लगाते हुए बोला.



 



वैसे भी दुधारू गाय की लात भी खानी पड़ती है तब जाकर वह थन पर हाथ रखने देती है।



 



"तुम फ्री हो क्या आज की रात?"



उस के इस सवाल से मैं बता नहीं सकता … पहली बार किसी सवाल को सुन कर इतनी खुशी मिली, मेरे मुरझा से गए मन और लन्ड दोनों ने जोरों से उछलना शुरू कर दिया।



 



"आप की सेवा में गुलाम हमेशा हाजिर है मोहतरमा, हुक्म फरमाएं!"



"वैभव अपनी कम्पनी के काम से आज रात 11 बजे मुम्बई जा रहे हैं 2 दिन के लिए, अगर आपका मन हो तो रात को आ जाना!"



 



ये औरत जात भी कमाल की चीज होती है, चूत में लन्ड की जरूरत इनको होती है लेकिन जताती ऐसे हैं कि हम तो बैगन और कैंडल से भी खुश हैं.



खैर छोड़ो मुझे तो बस चूत से मतलब है।



 



"अभी आ जाऊं क्या?"



"अभी नहीं! मुझे मरवाओगे क्या? अगर मेरी मारने का मन हो तो रात को 11:15 पर आ जाना!"



 



"जान आपने तो मेरी रात बना दी, कौन सा फ्लेवर लेकर आऊं आज?"



"आज कोई फ्लेवर नहीं, आज रात बिना छतरी के बरसात में भीगना है मुझे!"



"जैसा आपका आदेश सरकार!"



 



रेनू के फोन कट कर देने के बाद मन और लन्ड दोनों में गुदगुदी होनी शुरू हो गई.



उसके अद्भुत और मांसल सौन्दर्य को भोगे हुए 1 महीने से ज्यादा हो गया था.



 



घड़ी में समय देखा तो शाम के 6:30 हो रहे थे.



 



जल्दी से बाथरूम में जाकर लन्ड महाराज को झाड़ियों से मुक्त कराया और नारियल के तेल से अच्छे से मसाज की.



 



लन्ड महाराज भी रेनू की सांवली-सलोनी चूत और कसी हुई गांड में घुसने और कूदने को उतावले हो रहे थे क्योंकि वे दोनों रास्तों से अच्छे से परिचित थे।



 



लेकिन मैंने अपार संयम बरता और लन्ड महाराज को बड़ी मुश्किल से शांत कराया.



फिर बाजार से रेनू की पसंद की चॉकलेट और सेक्स वटी लेने निकल गया।



 



एक मेडिकल स्टोर से दवा ली और चॉकलेट लेकर रूम पर वापस आ गया.



आज तो भूख भी नहीं लग रही थी.



वैसे भी अगर डिनर में अगर रेनू जैसी मखमली, मांसल और कसी हुई चूत मिलने वाली हो तो कोई गधा ही रोटी खाने का मन करेगा।



 



मेरे लिए समय काटना बहुत मुश्किल हो रहा था, एक-एक मिनट आज मानो एक-एक घण्टे की तरह गुजर रहा था।



 



जैसे ही रात के 10 बजे, मैंने सारा सामान एक पॉलीबैग में डाला और बाइक लेकर रेनू के घर के पास जाकर वैभव के निकलने का इंतज़ार करने लगा.



 



करीब 10:20 पर वैभव घर से बाहर निकला, रेनू उसे छोड़ने दरवाजे तक आई.



उसने मेरून रंग की टाईट फिटिंग की नाईटी पहन रखी थी।



 



वैभव ने ऑटो रिक्शा वाले को पहले ही बुला रखा था.



उसने अपना बैग ऑटो रिक्शा में रखकर रेनू को बाय बोला और ऑटो रिक्शा चालक को चलने को कहा।



 



रेनू ने मुझे चारों ओर देखा, शायद उसे ऐसा लग रहा था कि मैं उसके आस-पास में ही हूं.



लेकिन जब उसे मैं वहां दिखाई नहीं दिया तो वह अपनी मांसल गांड को मटकाती हुई ऊपर चली गई.



 



टाइट नाईटी में उसके बाहर निकले हुए चौड़े चूतड़ मुझे खुला आमंत्रण दे रहे थे.



सीढ़ियों पर चढ़ते हुए रेनू का एक नितम्ब दूसरे नितम्ब को एक लय और ताल में घर्षण दे रहा था।



 



मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था इसलिए मैं वैभव के पीछे स्टेशन तक गया.



वैभव के ट्रेन में चढ़ जाने के बाद मैंने चैन की सांस ली और एक गदराई और अनछुई कली के यौवन का मर्दन करने के लिए स्टेशन से निकल आया.



 



करीब 10 मिनट के बाद में रेनू के दरवाजे पर था और जैसे ही मैंने दरवाजे पर हल्की सी दस्तक दी, रेनू मानो दरवाजा खोलने के लिए तैयार खड़ी थी, उसने झट से दरवाजा खोल दिया।



 



सामने साक्षात रति देवी खड़ी थी.



रेनू का सामने का लुक बहुत सेक्सी था.



गदराया बदन, मासूम भोला सा चेहरा, झील सी गहरी बड़ी-बड़ी आँखें, रस से भरे हल्के मोटे से होंठ, सुराहीदार गर्दन, सुंदर और हल्के चौड़े से कंधे, बड़े-बड़े तने हुए स्तन, समतल पेट, गहरी नाभि, पतली कमर, सुडौल और चौड़े चूतड़, छोटी सी मांसल चूत का तिकोना कटाव, हल्की मोटी जांघें किसी भी पुरुष की कामाग्नि भड़का सकती थीं।



 



रेनू की शारीरिक बनावट नॉर्थ और साऊथ इंडियन औरतों के बीच की कड़ी जैसी थी.



उसकी गांड बिल्कुल साऊथ इंडियन औरतों के जैसी चौड़ी और हल्की बाहर निकली हुई थी।



 



"अब अंदर आओगे या बाहर से ही चुदाई करके चले जाने का इरादा है?"



 



सच में दोस्तो, मैंने ना जाने कितनी लड़कियों और औरतों को नंगी देखा है लेकिन रेनू जैसी कशिश मुझे किसी भी औरत में नहीं दिखी.



 



अगर कोई औरत सम्पूर्ण औरत होगी तो वह 100 percent रेनू के जैसी ही होगी.



 



मैं उसके ड्राइंग रूम में आकर बैठ गया.



 



रेनू ने सिलिकॉन की हल्की चुस्त नाईटी पहन रखी थी जिसमें उसके कसे हुए उभार और हल्के से बाहर निकले हुए सुडौल और चौड़े चूतड़ कयामत बरपा रहे थे।



 



"खाना लगा दूं, मुझे पता है तुमने आज खुशी में कुछ नहीं खाया होगा!"



"नहीं यार, खाना खाने के बाद प्यार करने में मज़ा नहीं आता, अब तो कुछ और ही खाना है!"



 



"वैसे मैं तुम्हारे पति को ट्रेन में बिठा कर आ रहा हूं!"



"टेंशन फ्री होकर आना चाहते होगे, डरते हो ना??



"वैसे दूसरे के घर में घुसकर उसकी तुम्हारी जैसी हॉट और सेक्सी बीवी को चोदना हिम्मत की बात है!"



 



"हाँ ये तो है! चलो मुझे ये सुनकर बहुत अच्छा लगा कि तुमको मैं हॉट और सेक्सी लगती हूं!"



 



"वह तुमको आज रात पता चल जायेगा कि तुम मुझे कितनी हॉट और सेक्सी लगती हो!"



 



इतने दिनों के बाद हुस्न का दरिया सामने से झरझर करता हुआ बह रहा था और मैं प्यासा पथिक, मेरे लिए अब खुद पर पर संयम रखना मुमकिन नहीं था.



 



मैंने आगे बढ़ कर रेनू को बाहों में दबोच कर सोफे पर गिरा लिया.



रेनू भी यही चाह रही थी कि मैं किसी भूखे भेड़िए की तरह उस पर टूट पड़ूं.



 



मैंने उसके फूल की पंखुड़ियों जैसे होंठ अपने होंठों में भर कर चूसना शुरू कर दिया।



 



दूसरी तरफ मेरे हाथों ने भी अपना काम करना शुरू कर दिया था.



 



रेनू ने केवल नाईटी पहन रखी थी, उसके कठोर और बड़े-बड़े थनों को मेरे हाथों ने नाईटी के ऊपर से ही सहलाना और दबाना शुरू कर दिया.



 



उसके चूचुक अपना आकार बदलने लगे और उनकी घुंडियाँ अब तन कर खड़ी हो चुकीं थीं।



 



मैंने रेनू के दोनों चूचुकों की घुंडियों को उंगलियों से मसलना शुरू कर दिया.



रेनू गर्म होकर कुलबुलाने लगी.



 



मैंने नाईटी के ऊपर से उसकी तनी हुईं घुंडियों को हल्के दातों से काटना और कस के चूसना शुरू कर दिया.



रेनू का जिस्म थरथराने सा लगा, उसके मुंह से सिसकारियां निकलनी शुरू हो गईं.



 



मेरे हाथों ने उसकी नाइटी को नीचे खींच कर उसके पेट तक चढ़ा दिया.



उसके पैर और मांसल जांघें बिल्कुल चिकनी थीं.



 



मेरे हाथ उसकी मांसल और रोमविहीन जांघों को सहलाने लगे.



उसने मेरा मुंह अपने थनों पर कस के दबोच लिया- आह … आह! बस करो, अब मत तड़पाओ, मुझमें समा जाओ अब प्लीज़!



 



रेनू को अभी पता भी नहीं था कि यह तो उसकी तड़प की शुरुआत थी.



 



मैंने दोनों हाथों से उसके बड़े-बड़े स्तनों को बेहरमी से मसलना, चूचुकों की घुंडियों को होंठों से खींचना शुरू कर दिया.



उसकी चिकनी जांघों को सहलाते हुए मेरे हाथ स्वर्गद्वार की ओर बढ़ने लगे.



जैसे ही मेरी उंगलियाँ ने स्वर्गद्वार के बाहर उग आई घास को छुआ उसने अपनी जांघों को कस के आपस में भींच लिया जिससे से स्वर्गद्वार के कपाट आपस में जुड़कर बंद हो गए।



 



मैंने रेनू की आंखों में मिन्नत भरी नजरों से देखा.



उसके चेहरे पर से शरारत भरी मुस्कराहट थी.



 



मैंने कस के रेनू के स्वर्गद्वार को मुट्ठी में दबोच लिया।



 



"अरे रुको रुको, खोलती हूं बाबा, ये मेरी चूत है कोई बड़ा पाव नहीं, थोड़ा प्यार से पेश आओ!"



कहकर रेनू ने दोनों जांघों को खोलकर स्वर्गद्वार में प्रवेश करने की अनुमति दे दी.



 



मेरे उंगलियों ने स्वर्गद्वार पर हल्की सी दस्तक दी.



भाभी की वेट पुसी के बाहर उग आईं झाड़ियों पर कुछ गीलापन सा महसूस हुआ.



 



रेनू के स्वर्गद्वार से सफेद शबनम की छोटी-छोटी बूंदें बरस रहीं थीं.



 



मैंने उसकी गीली झाड़ियों पर उंगलियों को फिराया और ओस का गीलापन साफ किया.



शबनम से गीली उंगलियों को मुंह के पास लाकर सूंघा.



 



एक मदहोश कर करने वाली महक ने दिमाग को वश में कर दिया.



 



मैंने अपनी एक उंगली को मुंह में ले लिया.



 



कुछ खट्टा-कुछ कसैला सा स्वाद था उस स्वर्गद्वार की शबनम में!



लेकिन जैसा भी था मन को भाने वाला था।



 



रेनू आंखों को बन्द कर आनंद और वासना के असीम सागर में गोते लगा रही थी.



 



और उसके बाद मैंने अपने लंद को उसके गांड़ में डाला और फिर पेलता गया पेलता गया उसके बाद मैं अपना नूनी हिला के अपना स्पर्म उसके गांड़ में डाल दिया



 



मेरी कहानी यही खत्म होती है



आप सब का धन्यवाद पढ़ने के लिए

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